Valmiki Ramayana Ayodhya Kand sarga 99: चित्रकूट पर्वत पर किस नदी के किनारे था श्री राम का आश्रम!
Valmiki Ramayana Ayodhya Kand sarga 99: चित्रकूट पर्वत पर किस नदी के किनारे था श्री राम का आश्रम!
Valmiki Ramayana Ayodhya Kand sarga 99: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजकुमार भरत ने श्री राम की कुटिया का पता लगाया और उनसे मिलने के लिए आगे बढे।
Valmiki Ramayana Ayodhya Kand sarga 99: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजकुमार भरत ने श्री राम की कुटिया का पता लगाया और उनसे मिलने के लिए आगे बढे। इसके बाद, उस पर्णशाला के सामने भरत ने उस समय बहुत-से कटे हुए काष्ठ के टुकड़े देखे, जो होम के लिये संगृहीत थे। साथ ही वहाँ पूजा के लिये संचित किये हुए फूल भी दृष्टिगोचर हुए। आश्रमपर आने-जाने वाले श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा निर्मित मार्गबोधक चिह्न भी उन्हें वृक्षों में लगे दिखायी दिये, जो कशों और चीरों द्वारा तैयार करके कहीं-कहीं वृक्षों की शाखाओं में लटका दिये गये थे
भरत की शत्रुघ्न से मुलाकात Bharata Meets Shatrughna
उस समय चलते-चलते ही परम कान्तिमान् महाबाहु भरत ने शत्रुघ्न तथा सम्पूर्ण मन्त्रियों से अत्यन्त प्रसन्न होकर कहा, महर्षि भरद्वाज ने जिस स्थान का पता बताया था, वहाँ हमलोग आ गये हैं। मैं समझता हूँ मन्दाकिनी नदी यहाँ से अधिक दूर नहीं है। दशरथकुमार भरत ने उस वन में एक बड़ी पर्णशाला देखी, जो परम पवित्र और मनोरम थी। वहाँ इन्द्रधनुष के समान बहुत-से धनुष रखे गये थे, जो गुरुतर कार्य-साधन में समर्थ थे। जिनके पृष्ठभाग सोने से मढ़े गये थे और जो बहुत ही प्रबल तथा शत्रुओं को पीड़ा देने वाले थे। उनसे उस पर्णकुटी की बड़ी शोभा हो रही थी।
सोने की म्यानों में रखी हुई दो तलवारें और स्वर्णमय बिन्दुओं से विभूषित दो विचित्र ढालें भी उस आश्रम की शोभा बढ़ा रही थीं। पर्णशाला की ओर थोड़ी देरतक देखकर भरत ने कुटिया में बैठे हुए अपने पूजनीय भ्राता श्रीराम को देखा, जो सिर पर जटामण्डल धारण किये हुए थे। उन्होंने अपने अङ्गों में कृष्णमृगचर्म तथा चीर एवं वल्कल वस्त्र धारण कर रखे थे। भरत को दिखायी दिया कि श्रीराम पास ही बैठे हैं और प्रज्वलित अग्नि के समान अपनी दिव्य प्रभा फैला रहे हैं।
राजकुमार भरत ने श्रीराम को ‘आर्य’ कहकर पुकारा Prince Bharata Called Shri Ram As 'Arya'
उन्हें इस अवस्था में देख धर्मात्मा श्रीमान् कैकेयीकुमार भरत शोक और मोह में डूब गये तथा बड़े वेग से उनकी ओर दौड़े। भाई की ओर दृष्टि पड़ते ही भरत आर्तभाव से विलाप करने लगे। वे अपने शोक के आवेग को धैर्य से रोक न सके और आँसू बहाते हुए गद्गद वाणी में बोले, जो राजसभा में बैठकर प्रजा और मन्त्रिवर्ग के द्वारा सेवा तथा सम्मान पाने के योग्य हैं, वे ही ये मेरे बड़े भ्राता श्रीराम यहाँ जंगली पशुओं से घिरे हुए बैठे हैं। अत्यन्त दुःख से संतप्त होकर महाबली राजकुमार भरत ने एक बार दीनवाणी में ‘आर्य’ कहकर पुकारा फिर वे कुछ न बोल सके।
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